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द्वितीया : ब्रह्मचारिणी Dwitiya Brahmcharini Mata

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ब्रह्मचारिणी Dwitiya Brahmcharini Mata

नवरात्रि पर्व के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना की जाती है। साधक इस दिन अपने मन को माँ के चरणों में लगाते हैं।

ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली। इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएँ हाथ में कमण्डल रहता है।

इनको ज्ञान, तपस्या और वैराग्य की देवी माना जाता है । कठोर साधना और ब्रह्म में लीन रहने के कारण इनको ब्रह्मचारिणी कहा गया है ।

विद्यार्थियों के लिए और तपस्वियों के लिए इनकी पूजा बहुत ही शुभ औ फलदायी होती है । मान्यता है कि जिनका चन्द्रमा कमजोर हो, उनके लिए भी मां ब्रह्मचारिणी की उपासना अत्यंत अनुकूल होती है ।

Navratri dusri mata नवरात्रि दूसरी माता 

माँ दुर्गाजी का यह दूसरा स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनन्तफल देने वाला है। इनकी उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है। जीवन के कठिन संघर्षों में भी उसका मन कर्तव्य-पथ से विचलित नहीं होता।

माँ ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से उसे सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है। दुर्गा पूजा के दूसरे दिन इन्हीं के स्वरूप की उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन ‘स्वाधिष्ठान ’चक्र में शिथिल होता है। इस चक्र में अवस्थित मनवाला योगी उनकी कृपा और भक्ति प्राप्त करता है।

इस दिन ऐसी कन्याओं का पूजन किया जाता है कि जिनका विवाह तय हो गया है लेकिन अभी शादी नहीं हुई है। इन्हें अपने घर बुलाकर पूजन के पश्चात भोजन कराकर वस्त्र, पात्र आदि भेंट किए जाते हैं।

Mata ki katha ब्रह्मचारिणी माता की कथा :

माना जाता है कि नारदजी के उपदेश से भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए माता ने घोर तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इन्हें ब्रह्मचारिणी नाम से जाना गया।

एक हजार वर्ष तक इन्होंने केवल फल-फूल खाकर बिताए और सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया । कुछ दिनों तक कठिन उपवास रखे और खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के घोर कष्ट सहे।

तीन हजार वर्षों तक टूटे हुए बिल्व पत्र खाए और भगवान शंकर की आराधना करती रहीं, इसके बाद तो उन्होंने सूखे बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिए।

कई हजार वर्षों तक निर्जल और निराहार रह कर तपस्या करती रहीं. पत्तों को खाना छोड़ देने के कारण ही इनका नाम अपर्णा नाम पड़ गया।

कठिन तपस्या के कारण देवी का शरीर एकदम क्षीण हो गया देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ने ब्रह्मचारिणी की तपस्या को अभूतपूर्व पुण्य कृत्य बताया, सराहना की और कहा- हे देवी आज तक किसी ने इस तरह की कठोर तपस्या नहीं की यह आप से ही संभव थी ।

आपकी मनोकामना परिपूर्ण होगी और भगवान चंद्रमौलि शिवजी तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे, अब तपस्या छोड़कर घर लौट जाओ जल्द ही आपके पिता आपको लेने आ रहे हैं।

मां की कथा का सार यह है कि जीवन के कठिन संघर्षों में भी मन विचलित नहीं होना चाहिए। मां ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से सर्व सिद्धि प्राप्त होती है।

प्रत्येक सर्वसाधारण के लिए आराधना योग्य यह श्लोक सरल और स्पष्ट है। माँ जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में द्वितीय दिन इसका जाप करना चाहिए।

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और ब्रह्मचारिणी के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ।

पूजा विधि?

मां ब्रह्मचारिणी की उपासना के समय पीले या सफ़ेद वस्त्र धारण करें । मां को सफ़ेद वस्तुएं अर्पित करें जैसे- मिसरी, शक्कर या पंचामृत ।

ज्ञान और वैराग्य का कोई भी मंत्र जपा जा सकता है। मां ब्रह्मचारिणी के लिए “ॐ ऐं नमः” का जाप सबसे उत्तम माना जाता है ।जलीय आहार और फलाहार पर विशेष ध्यान देना चाहिए।

नवरात्रि में इन नौ देवियों का पूजन
: पहले दिन- शैलपुत्री
: दूसरे दिन- ब्रह्मचारिणी
: तीसरे दिन- चंद्रघंटा
: चौथे दिन- कुष्मांडा
: पांचवें दिन- स्कंदमाता
: छठे दिन- कात्यायनी
: सातवें दिन- कालरात्रि
: आठवें दिन- महागौरी
: नवें दिन- सिद्धिदात्री

जय माता दी