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बदलता देश बदलता परिवेश

समय बदला, थोड़ा बदलिए, साथ चलिए

आजकल बदलते समाज में जब नारी कहीं भी कम नहीं वो पुरुषों के कदम से कदम मिलाकर चल रही है । 

पर हमारा समाज अभी उतना विकसित नहीं हुआ खासकर यदि हम मेट्रो सिटी को छोड़ दें तो छोटे शहरों में शूट पहनना और गांव में जीन्स टॉप पहनना आज भी अशोभनीय माना जाता है । 

पर क्या साड़ी पहनकर ,घूंघट निकालकर चलते रहने से आगे जाकर आपके परिवार दुनियां के अन्य परिवारों से कदम से कदम मिलाकर चल सकेंगे ??

आइए देखें एक नजर में , बदलें विचार

समस्या – *”बेटा, मेरी बहुएं मेरा कहना नहीं सुनती। सलवार सूट और जीन्स पहन के घूमती हैं। सर पर पल्ला/चुनरी नहीं रखती और मार्किट चली जाती हैं। मार्गदर्शन करो कि कैसे इन्हें वश में करूँ…”*

*समाधान* – आंटी जी चरण स्पर्श, पहले एक कहानी सुनते हैं, फिर समस्या का समाधान सुनाते हैं।

“एक अंधे दम्पत्ति को बड़ी परेशानी होती, जब अंधी खाना बनाती तो कुत्ता आकर खा जाता। रोटियां कम पड़ जाती।

तब अंधे को एक समझदार व्यक्ति ने आइडिया दिया कि तुम डंडा लेकर दरवाजे पर थोड़ी थोड़ी देर में फटकते रहना, जब तक अंधी रोटी बनाये।

अब कुत्ता *तुम्हारे हाथ मे डंडा देखेगा और डंडे की खटखट सुनेगा तो स्वतः डर के भाग जाएगा रोटियां सुरक्षित रहेंगी*। युक्ति काम कर गयी, अंधे दम्पत्ति खुश हो गए।

कुछ वर्षों बाद दोनों के घर मे सुंदर पुत्र हुआ, जिसके आंखे थी और स्वस्थ था। उसे पढ़ा लिखाकर बड़ा किया। उसकी शादी हुई और बहू आयी।

बहु जैसे ही रोटियां बनाने लगी तो लड़के ने डंडा लेकर दरवाजे पर खटखट करने लगा। बहु ने पूँछा ये क्या कर रहे हो और क्यों?

तो लड़के ने बताया ये हमारे घर की परम्परा है, मेरी माता जब भी रोटी बनाती तो पापा ऐसे ही करते थे। कुछ दिन बाद उनके घर मे एक गुणीजन आये, तो माज़रा देख समझ गए।

बोले बेटा तुम्हारे माता-पिता अंधे थे, अक्षम थे तो उन्होंने ने डंडे की खटखट के सहारे रोटियां बचाई। लेकिन तुम और तुम्हारी पत्नी दोनों की आंखे है, तुम्हे इस खटखट की जरूरत नहीं।

*बेटे परम्पराओं के पालन में विवेक को महत्तव दो*।

आंटीजी, *इसी तरह हिंदू स्त्रियों में पर्दा प्रथा मुगल आततायियों के कारण आयी थी*, क्योंकि वो सुंदर स्त्रियों को उठा ले जाते थे।

इसलिए स्त्रियों को मुंह ढककर रखने की आवश्यकता पड़ती थी। सर पर हमेशा पल्लू होता था यदि घोड़े के पदचाप की आवाज़ आये तो मुंह पर पल्ला तुरन्त खींच सकें।”

अब हम स्वतन्त्र देश के स्वतन्त्र नागरिक है, राजा का शासन और सामंतवाद खत्म हो गया है। अब स्त्रियों को सर पर अनावश्यक पल्ला और पर्दा प्रथा पालन की आवश्यकता नहीं है।

घर के बड़ो का सम्मान आंखों में होना चाहिए, बोलने में अदब होना चाहिए और व्यवहार में विनम्रता छोटो के अंदर होनी चाहिए।

सर पर पल्ला रखे और वृद्धावस्था में सास-ससुर को कष्ट दे तो क्या ऐसी बहु ठीक रहेगी?

आंटीजी पहले हम सब लकड़ियों से चूल्हे में खाना बनाते थे, लेकिन अब गैस में बनाते है।

पहले बैलगाड़ी थी और अब लेटेस्ट डीज़ल/पेट्रोल गाड़िया है।

टीवी/मोबाइल/लैपटॉप/AC इत्यादि नई टेक्नोलॉजी उपयोग जब बिना झिझक के कर रहे हैं, तो फिर बहुओं को पुराने जमाने के हिसाब से क्यों रखना चाहती है?

नए परिधान यदि सभ्य है, सलवार कुर्ती, जीन्स कुर्ती तो उसमें किसी को समस्या नहीं होनी चाहिए। जब बेटियाँ उन्ही वस्त्रों में स्वीकार्य है तो फिर बहु के लिए समस्या क्यों?

आंटी जी, “परिवर्तन संसार का नियम है”। यदि आप अच्छे संस्कार घर में बनाये रखना चाहते हो तो उस सँस्कार के पीछे का लॉजिक प्यार से बहु- बेटी को समझाओ। उन्हें थोड़ी प्राइवेसी दो और खुले दिल से उनका पॉइंट ऑफ व्यू भी समझो।

बहु भी किसी की बेटी है, आपकी बेटी भी किसी की बहू है।

अतः घर में सुख-शांति और आनन्दमय वातावरण के लिए  जिस तरह आपने मोबाइल जैसी टेक्नोलॉजी को स्वीकार किया है वैसे ही बहु के नए परिधान को स्वीकार लीजिये।

बहू या बेटी अगर सभ्य होगी तो वो खुद भी कोई भी परिधान ऐसा नहीं पहनेगी कि जो शरीर को न ढंके या फूहड़ लगे ।

बहु को एक मां की नज़र से बेटी रूप में देखिए, और उससे मित्रवत रहिये ।

-एडिटर- प्रियंका शर्मा