राष्ट्रपति शासन से जुड़े प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 356 में दिए गए हैं । अनुच्छेद 356, केंद्र सरकार को किसी राज्य सरकार को बर्खास्त करने और राष्ट्रपति शासन लगाने की अनुमति उस अवस्था में देता है, जब राज्य का संवैधानिक तंत्र पूरी तरह विफल हो गया हो।
आर्टिकल 356 के मुताबिक राष्ट्रपति किसी भी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा सकते हैं यदि वे इस बात से संतुष्ट हों कि राज्य सरकार संविधान के विभिन्न प्रावधानों के मुताबिक काम नहीं कर रही है । ऐसा जरूरी नहीं है कि राष्ट्रपति उस राज्य के राज्यपाल की रिपोर्ट के आधार पर ही यह फैसला लें ।
केंद्र सरकार की सलाह पर अथवा अपने विवेक पर राज्यपाल सदन को भंग कर सकते हैं यदि सदन में किसी पार्टी या गठबंधन के पास स्पष्ट बहुमत ना हो।
राष्ट्रपति शाशन के दौरान प्रशासनिक दृष्टि से राज्य के राज्यपाल को केंद्रीय सरकार द्वारा कार्यकारी अधिकार प्रदान किए जाते हैं ।
प्रशासन में मदद करने के लिए राज्यपाल सलाहकारों की नियुक्ति करता है, जो आम तौर पर सेवानिवृत्त सिविल सेवक होते हैं ।
राज्यपाल सदन को छह महीने की अवधि के लिए ‘निलंबित अवस्था’ में रख सकते हैं। छह महीने के बाद, यदि फिर कोई स्पष्ट बहुमत प्राप्त ना हो तो उस दशा में अगले छह माह के लिए आगे बढ़ा सकते हैं अथवा पुन: चुनाव आयोजित किये जाते हैं।
यदि संसद के दोनों सदनों द्वारा राष्ट्रपति शासन का अनुमोदन कर दिया जाता है तो राष्ट्रपति शासन 6 माह तक चलता रहेगा, इस प्रकार 6-6 माह कर इसे 3 वर्ष तक आगे बढ़ाया जा सकता है ।
राष्ट्रपति शाशन के उपरान्त दो माह के अंदर इसका दोनों सदनों लोकसभा व राज्यसभा में अनुमोदन करना आवश्यक है । यदि लोकसभा भंग हो जाती है तो राज्यसभा द्वारा अनुमोदन किए जाने के बाद नई लोकसभा गठन के एक महीने के भीतर अनुमोदन किया जाना जरूरी है ।
अनुच्छेद 356 एक साधन है जो केंद्र सरकार को किसी नागरिक अशांति जैसे कि दंगे जिनसे निपटने में राज्य सरकार विफल रही हो की दशा में किसी राज्य सरकार पर अपना अधिकार स्थापित करने में सक्षम बनाता है ।
1950 में भारतीय संविधान के लागू होने के बाद से केन्द्र सरकार द्वारा इसका प्रयोग 100 से भी अधिक बार किया गया है।
राष्ट्रपति शाशन के दौरान राज्य का राज्यपाल, राष्ट्रपति के नाम पर राज्य सचिव की सहायता से अथवा राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किसी सलाहकार की सहायता से राज्य का शासन चलाता है ।
राष्ट्रपति द्वारा मुख्यमंत्री के नेतृत्व वाली मंत्रीपरिषद् को भंग करके राज्य सरकार के कार्य अपने हाथ में ले लिए जाते हैं और उसे राज्यपाल और अन्य कार्यकारी अधिकारियों की शक्तियां प्राप्त हो जाती हैं ।