क्या आपके सामने ये सब हुआ है ?
आप सोचकर देखिए वो पुरानी यादें , मन प्रफुल्लित हो उठेगा , एक रोमांच सा जेहन में उतर आएगा । खुद ही सोचेंगे ऐसा भी हुआ था कभी , बच्चों को बताओगे तो उन्हें यकीन न आएगा ।
कम ही घरों में टीवी हुआ करती थी , टीवी वो भी ब्लैक एंड व्हाइट , दूरदर्शन के प्रसारण को देखने के लिए एंटीना एडजस्ट करना होता था , घर की छत पर एंटीना सही करने वाला एक, दूसरा बाहर खड़ा होकर निर्देश देने वाला और तीसरा टीवी पर चित्र साफ हुए या नहीं देखने वाला , आवाज छत से “आई क्या” , “अरे नहीं थोड़ा और घुमा ” , “आई आई अरे पहले वाली साइड में ले थोड़ा , हाँ आ गई “, यहीं फिक्स करके उतर आ ।
सन सतासी दूरदर्शन पर रामायण का प्रसारण पूरे गांव में एक टीवी , बिजली तो कहीं कहीं थी तो टीवी बैटरी से चलती थी , बैटरी के चार्ज होने की फिक्र बैटरी वाले से ज्यादा सारे गाँव वालों को हुआ करती थी ।
याद है मामा जी का वो गाँव जहाँ ट्रैक्टर के बोनट पर रखकर उसकी बैटरी से टीवी पर रामायण का चलना और ट्रैक्टर के सामने पूरे गाँव की भीड़ एक टक निगाह टीवी पर ।
जिस दिन ट्रैक्टर खेत से आधा घंटे पहले ना पहुंचा तो सबको फिकर कहीं रामायण ना निकल जाए , बुलाने के लिए साइकिल सवार खेतों की दौड़ लगाते जुताई रुकवाकर ट्रैक्टर का वापस आना और सबका खुशी से चिल्लाना “आ गया आ गया “।
यही हालात रामायण के बाद दूरदर्शन पर रिलीज हुए दूसरे धारावाहिक महाभारत के साथ हुए । आज जब आप सोच भी नहीं सकते कि सिर्फ टीवी देखने दूसरे के घर जाना , उस समय लोग बुला लिया करते थे अरे मेरे पास व्यवस्था है आ जाना और साथियों को भी लेते आना , फॉर्मेलिटी तो जैसे थी ही नहीं कहीं , पैसा कम था पर दिल बहुत बड़े ।
समय बदला हालात बदल गए घर घर घर टीवी आ गईं , बिजली का दायरा बढ़ने लगा घरों में टीवी के साथ पंखे भी आ गए ।
वो दौर भी आया जब चन्द्रकान्ता, और शक्तिमान जैसे धारावाहिकों ने खूब लुभाया। रविवार को सुबह जल्दी तैयार होकर सीधा टीवी के सामने सुबह 7 बजे रंगोली के मधुर गानों।से शुरुआत करके धारावाहिक और कार्टून आदि लगभग 12 बजे तक और उसके बाद साप्ताहिक फ़िल्म शाम के समय , फिर से संडे का इंतजार ।
बीच बीच में कई जासूसी धारावाहिक जैसे एक दो तीन चार, सुपर सिक्स, व्योमकेश बख्शी, और तहकीकात का क्रेज बस देखने लायक होता था , तब बिजली जाने पर जिनके घरों में बैटरी होती थीं वहाँ की तरफ निकल आते थे बच्चे ।
पुराने लोगों को याद होगा गर्मियों में छत पर सोने के लिए पहले से दो बाल्टी पानी डालकर आना जिससे छत थोड़ा ठंडी हो जाए , और अपनी अपनी जगह निश्चित कर लेना कि कौन कहाँ सोएगा , बच्चे बच्चे एक साइड बड़े बड़े एक साइड , छत से मिली छत , अड़ोसी पड़ोसी से गप शप के बाद सुकून भरी नींद ।
आज के दौर में ऐसी हैं , कूलर हैं , किसी का छत पर जाकर सोने का मन नहीं होता , प्राइवेशी नाम के एक शब्द ने तो एक दूसरे के पास जाना ही कम कर दिया है ।
उस समय में डॉट फोन सिर्फ अपने नहीं पूरे मोहल्ले के नंबर हुआ करता था , पी पी नंबर देने में भी लोग अपने आप पर गर्व करते थे और रिश्तेदारों को बोल देते थे जब भी जरूरत हो फोन कर लेना ।
फोन आते भी थे और फिर एक बच्चा दौड़कर बुलाने जाता था अंकल जी आपका फोन आया है , जल्दी आओ वो 5 मिनट बाद फिर से करेंगे । और आज आदमी मोबाइल लेकर भी दूसरे से बात कराने न जाए , लगभग हर घर मे मोबाइल हैं और कुछ घरों में लगभग हर हाथ मे मोबाइल हैं ।
किसी भी बड़े फंक्शन या पार्टी के समय रात में दुकान वाले से VCR बुक करके आना वो भी कलर टीवी के साथ और एक साथ तीन या चार फिल्मों की कैसेट । पूरा कमरा भीड़ से ठसा ठस । फिर भी और लोगों के समाने की जगह दिल मे बहुत थी ।
रेडियो पर प्रसार भारती , गानों से पहले बताना कि इस गाने की फरमाइश की है बबलू, गुड्डू , गुड़िया और साथियों ने । कई घरों में टेप रिकॉर्डर पर बजते गाने , कैसेट में छाँट छाँट कर गाने रिकॉर्ड करा के लाना । यहां तक कि आपस मे कुछ समय के लिए कैसेटों का अदल बदल भी हुआ करता था ।
और भी बहुत कुछ .
…… क्रमशः