शिवसेना और बीजेपी (Shivsena – BJP) की दोस्ती 30 साल पुरानी थी । शिवसेना के अनुसार वे पिछले 30 साल से भाजपा को उसकी इच्छा अनुसार अपनी इच्छाएं दबाकर समर्थन किए जा रहे थे । पिछली बार भी अधिक सीट माँगने पर भाजपा से चिक चिक हुई थी ।
शिवसेना का कहना है कि इस बार भी विधानसभा चुनाव के दौरान जो गठबंधन बना वो 50-50 के फार्मूले पर बना लेकिन चुनाव नतीजों के बाद भाजपा की नीयत डोल गई ।
उधर भाजपा के अनुसार 50-50 पर कोई बात नहीं हुई थी ।
देखने वाली बात यह है कि दोनों ही पार्टियाँ कुर्सी नहीं छोड़ना चाहतीं । एक तरफ देवेंद्र फडणवीस को सरकार बनाने का न्योता मिलने के बाद भाजपा मान रही थी कि हर बार की तरह शिवसेना मान जाएगी ।
लेकिन इस बार शिवसेना भी अपनी बात 50-50 को दोहराती हुई अपनी जिद पर अड़ गए हैं । अड़ने की वजह यह भी है कि उनको NCP और कांग्रेस से समर्थन मिल जाने की उम्मीद है ।
माना जा रहा है कि एनसीपी ने महाराष्ट्र में साथ सरकार बनाने के लिए शिवसेना के सामने शर्त रखी थी कि उसे पहले एनडीए से नाता तोड़ना होगा ।
और भाजपा के जिद पर अड़े रहने के बाद अब एनडीए से शिवसेना का निकल जाना लगभग तय हो गया है ।
शिवसेना नेताओं का कहना है कि 30 साल से वे एक तरफा दोस्ती निभा रहे थे और हर बार झुकते आ रहे थे । सामने वाला (भाजपा) एक बार भी दोस्ती अपनी तरफ से निभाने को तैयार नहीं । ऐसे में इस प्रकार की दोस्ती का कोई मतलब नहीं रह जाता ।
शिवसेना ने यह भी कहा कि मौका परस्त भाजपा तो कुर्सी के लिए पीडीपी जैसी पार्टी से भी गठबंधन कर लेती है । पर दोस्त पार्टी को ढाई साल के लिए कुर्सी न दे सकी ।