राहुल और अखिलेश की नजदीकियों के बाद भी मायावती काँग्रेस से क्यों खफा हैं ?
आखिर ऐसा क्या है कि माया जिनकी पहले सोनिया के साथ नजदीकी फोटो देखने को मिली थीं वे आजकल कांग्रेस के साथ नहीं आना चाहतीं ? आइए देखते हैं
दरअसल मायावती की पार्टी बसपा का मुख्य वोट दलित वोट बैंक को समझा जाता है । सपा के साथ गठबंधन के बाबजूद पार्टी को ये वोट बैंक बाद में भी जाने का खतरा नहीं है ।
पर अगर काँग्रेस साथ आती है तो जो दलित वोट बैंक एक बार बसपा से काँग्रेस को ट्रान्सफर होगा वो बाद में भी वापस मिलने की कोई उम्मीद नहीं ।
दरसअल सपा और बसपा क्षेत्रीय पार्टियां हैं जबकि काँग्रेस राष्ट्रीय स्तर की पार्टी है जो कि बसपा को अधिक नुकसान पहुंचा सकती है या समझ लीजिए बसपा का सारा वोट अपने पाले में ले जा सकती है ।
बसपा अध्यक्ष मायावती के कांग्रेस से खफा होने की दूसरी वजह पश्चिमी यूपी में भीम आर्मी के चंद्रशेखर से प्रियंका गांधी का उनसे अस्पताल में मिलने जाना भी हो सकती है।
कांग्रेस कई ऐसे कदम उठा रही है जिनसे बसपा को अनुसूचित जाति, यहां तक कि जाटव वोट बैंक में भी सेंध लगती नजर आ रही है।
कांग्रेस ने कई जगह बसपा से अलग होने वाले नेताओं को टिकट देकर अपने पुराने दलित-मुस्लिम समीकरण को साधने का दांव चला है।
मायावती ने अपने समर्थकों को कांग्रेस से सावधान रहने का फरमान सुनाया है। आने वाले दिनों में मायावती का कांग्रेस पर हमला और तेज हो सकता है।
काँग्रेस के राजबब्बर ने फतेहपुर सीकरी सीट पर बसपा के कई नेताओं का साथ हासिल कर लिया है जिससे काँग्रेस मजबूत होती दिख रही है ।
यूपी के जातिवादी गणित में करीब 19 फीसदी दलित मतदाता हैं। इनमें 16 फीसदी जाटव मतदाता है।उसके बाद यदि मुस्लिम मतदाता भी मायावती खेमे से काँग्रेस की तरफ झुकता लगता है ।
बसपा सुप्रीमो मायावती देश की प्रमुख एससी चेहरा मानी जाती हैं।लेकिन जब इसके पीछे सीधे-सीधे कांग्रेस वोटबैंक छीनती नजर आ रही है तो नाराजगी होगी ही।
मायावती ने इसी कारण भीम आर्मी के चंद्रशेखर को पूरी तरह से नजरअंदाज किया है कि वो जाटव समाज का उभरता चेहरा है और बसपा के लिए नुकसान दायक है ।
बसपा सरकार में मंत्री रहीं ओमवती जाटव ने 2007 में बसपा जॉइन की और चौथी बार विधायक बनीं । इस बार ओमवती कांग्रेस में चली गईं हैं और उन्हें कांग्रेस ने उन्हें प्रत्याशी बना दिया।
1987 बैच की आईआरएस अधिकारी प्रीता हरित बहुजन सम्यक संगठन चलाती हैं कांग्रेस ने उन्हें आगरा से प्रत्याशी बनाया है। गठबंधन में आगरा सीट बसपा के पास है।
सीतापुर सीट भी बसपा के हिस्से में आई है। पिछले लोकसभा चुनाव में बसपा प्रत्याशी कैसरजहां थीं। इस बार कैसरजहां कांग्रेस में चली गईं। कांग्रेस ने उन्हें प्रत्याशी बना दिया है।
इसी महीने सपा छोड़कर कांग्रेस में आए पूर्व सांसद रामशंकर भार्गव को लखनऊ की मोहनलालगंज सीट से प्रत्याशी बनाया है। जिससे बसपा की ही परेशानी बढ़नी तय है।
इसलिए मायावती काँग्रेस से दूर हट रही हैं और अपने कार्यकर्ताओं को भी यही सलाह दे रही हैं ।
आ रहे ओपिनियन पोल भी पिछली बार के मुकाबले काँग्रेस को ज्यादा सीट आना दिखा रहे हैं । हालांकि मायावती को पिछले चुनाव में कोई सीट नहीं मिली थी तो कोई नुकसान नही होगा । लेकिन वोटबैंक जाने का नुकसान आगे बड़ा होगा ।