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अयोध्या विवादित गैर विवादित भूमि

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लोकसभा चुनाव से पहले मोदी सरकार ने अयोध्या मामले में मंगलवार को बड़ा कदम उठाया।

मंगलवार को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या में गैर-विवादित जमीन उनके मालिकों को लौटाने की अर्जी लगा दी ।

उसने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर कर मांग की कि अयोध्या की गैर-विवादित जमीनें उनके मूल मालिकों को लौटा दी जाएं।

1991 से 1993 के बीच केंद्र की तत्कालीन पीवी नरसिम्हा राव सरकार ने विवादित स्थल और उसके आसपास की करीब 67.7 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया था।

जबकि 2003 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि जब तक विवाद का निपटारा नहीं होगा, गैर-विवादित जमीन नहीं लौटाई जाएगी ।

अयोध्या में 2.77 एकड़ जगह में राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद का विवाद है।
0.313 एकड़ में विवादित ढांचा बना था जिसे 6 दिसंबर 1992 को गिरा दिया गया था। अभी इसी 0.313 एकड़ जमीन के एक हिस्से में विराजमान हैं।

अधिग्रहित जमीन में 42 एकड़ जमीन राम जन्मभूमि ट्रस्ट की है। 

कोर्ट ने 1994 के फैसले में कहा था कि विवादित जमीन से संबंधित मामले की सुनवाई अदालत करेगी और सरकार गैर विवादित जमीन मालिकों को लौटा सकती है। 

राम जन्मभूमि ट्रस्ट ने केंद्र से 1996 में जमीन वापस की अर्जी की । लेकिन केंद्र ने कहा अर्जी पर तभी विचार होगा जब विवादित जमीन पर हाई कोर्ट फैसला दे। 

राम जन्मभूमि ट्रस्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में अपील की जो ठुकरा दी गई । 

कोर्ट ने 2003 में दिए एक फैसले में कहा कि 67 एकड़ अधिग्रहीत जमीन केंद्र सरकार के पास रहेगी। यथास्थिति केस के फैसले तक बरकरार रहेगी। 

अब केंद्र सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में फिर से जमीन मालिकों को गैर विवादित जमीन लौटाने की अर्जी की है । 

 केंद्र की सुप्रीम कोर्ट में अर्जी है कि गैर-विवादित जमीनों पर मुस्लिमों का दावा नहीं है अतः ये जमीनें उनके मालिकों को लौटाई जाएं ।

केंद्र की अर्जी पर भाजपा और सरकार का कहना है कि हम विवादित जमीन को छू भी नहीं रहे , हम अतिरिक्त और गैर-विवादित जमीन उनके मूल मालिकों को लौटाने की अनुमति चाहते हैं ।

मुस्लिम समाज ने भी 0.313 एकड़ के मूल विवादित क्षेत्र पर ही अपना दावा जताया है, जहां 1992 से पहले विवादित ढांचा मौजूद था। अतः 1993 के कानून के तहत अधिग्रहित की गई शेष जमीनें उनके मूल मालिकों को लौटाने की अपील की है ।

इलाहाबाद हाईकोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच ने 30 सितंबर 2010 को 2:1 के बहुमत से 2.77 एकड़ के विवादित जमीन को इस तरह बाँट दिया था –

जिस जगह पर रामलला की मूर्ति है, उसे रामलला विराजमान को दी जाए ।

राम चबूतरा और सीता रसोई वाली जगह निर्मोही अखाड़े को दे दी जाए।

बचा हुआ एक-तिहाई हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया जाए।

इस फैसले को निर्मोही अखाड़े और सुन्नी वक्फ बोर्ड ने नहीं माना और उसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई।

शीर्ष अदालत ने 9 मई 2011 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी। सुप्रीम कोर्ट में यह केस तभी से लंबित है।