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मकर संक्रान्ति महापर्व

मकर संक्रान्ति

पौष मास में जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है तभी संक्रांति के इस पावन पर्व को मनाया जाता है। मकर संक्रान्ति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर कदम के रूप में माना जाता है। यह त्योहार जनवरी महीने में चौदहवें या पन्द्रहवें दिन ही पड़ता है।  इस दिन सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है ।

भारत उत्तरी गोलार्ध में स्थित है और मकर संक्रान्ति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में होता है। मकर संक्रान्ति से सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध की ओर आना शुरू हो जाता है और दिन का बड़ा होना व प्रकाश का अधिक समय तक रहना शुरू हो जाता है दिन धीरे धीरे बड़े होने शुरू हो जाते हैं। इस बजह से लोगों द्वारा सूर्यदेव की उपासना, आराधना एवं पूजन किया जाता है।

मकर संक्रांति कब और क्यों

मकर संक्रांति का त्योहार इस बार 14 जनवरी को मनाया जाएगा ।

मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है। हिन्दू पंचांग और धर्म शास्त्रों के अनुसार यदि सूर्य का मकर राशी में प्रवेश 14 की शाम को हो रहा हैं। शास्त्रों के अनुसार रात में संक्रांति नहीं मनाते तो अगले दिन सूर्योदय के बाद ही उत्सव मनाया जाना चाहिए। इसलिए कई बार मकर संक्रांति 15 जनवरी को भी मनाई जाती है ।

कैसे मनाते है संक्रांति त्यौहार

स्नान पर्व के रूप में

मकर संक्रान्ति के अवसर पर गंगास्नान एवं गंगातट पर दान को अत्यन्त शुभ माना गया है। संक्रांति के दिन तीर्थराज प्रयाग एवं गंगासागर में स्नान को महास्नान की संज्ञा दी गयी है। मकर संक्रांति के दिन गंगा सागर का स्नान इतना महत्वपूर्ण माना जाता है कि लोग देश के कौने कौने  से गंगा सागर स्नान करने जाते हैं।

गंगा, प्रयागराज संगम समेत नदी, सरोवर, कुंड आदि में स्नान के साथ सूर्य को अर्घय देने और दान का विशेष महत्व है। नदियों के संगम पर लाखों की संख्या में नहाने के लिये जाते हैं। स्नानोपरांत सूर्य सहस्त्रनाम, सूर्य चालीसा, सूर्य मंत्र उच्चारण कर सूर्य की पूजा की जाती है। साथ ही गुड़, तिल, कंबल, खिचड़ी, चावल आदि पुरोहितों या गरीबों को दान करते हैं।

इस पर्व पर गंगा एवं रामगंगा घाटों पर बड़े-बड़े मेले लगते है। माघ मेले का पहला स्नान मकर संक्रान्ति से शुरू होकर शिवरात्रि के आख़िरी स्नान तक चलता है।

दान पुण्य का उत्सव

इस अवसर पर महिलाएँ किसी भी सौभाग्यसूचक वस्तु का चौदह की संख्या में पूजन एवं संकल्प कर चौदह लोगों को दान कर देती हैं। इस संकल्प प्रक्रिया को उत्तर भारत में छिरका छांटा के नाम से भी पुकारा जाता है । विभिन्न प्रकार की खाध्य सामग्री , उपयोग की वस्तुएं , सर्दी के कपड़े अथवा कम्बल , शाल इत्यादि 14 की संख्या में दान की जाती हैं।

कुछ लोग तीर्थस्थल में स्नान करके दान-धर्मादि करते हैं और तिल, घी, शर्करा और कन्दमूल खाकर धूमधाम से त्यौहार मनाते हैं। इस दिन उड़द, चावल, तिल, चिवड़ा, ऊनी वस्त्र, कम्बल आदि दान करने का बहुत महत्व है।

पतंग महोत्सव पर्व

संक्रांति का यह पर्व ‘पतंग महोत्सव’ के लिए भी प्रसिद्ध है। इस दिन लोग छतों पर खड़े होकर पतंग उड़ाते हैं। पतंग महोत्सव का आयोजन भी कई शहरों में विधिवत किया जाता है । विभिन्न जगहों के पतंगबाज प्रतिस्पर्धाओं का हिस्सा बनते हैं । लोग भी इन समारोहों में सम्मिलित हो हर्ष महसूस कर लुत्फ़ उठाते हैं ।

किसानों का त्यौहार

मकर संक्रान्ति के दिन किसान फसल अच्छी हो इसके लिए भगवान को प्रशन्न करने हेतु विभिन्न प्रकार से दान पुण्य आदि करते हैं प्रभु की अनुकम्पा सदैव लोगों पर बनाये रखने का आशीर्वाद माँगते हैं। इसलिए मकर संक्रान्ति के त्यौहार को फसलों एवं किसानों के त्यौहार के नाम से भी जाना जाता है मकर संक्रांति के दिन बहुत से लोग उपवास भी करते हैं।

संक्रांति के अनेक रूप

खिचड़ी  के नाम से प्रसिद्ध

उत्तर भारत में कई जगह संक्रांति के इस पावन त्यौहार को खिचड़ी के नाम से भी जाना जाता है तथा इस दिन खिचड़ी खाने एवं खिचड़ी दान देने का अत्यधिक महत्व होता है। यहाँ तक कि इस दिन खिचड़ी दान भी की जाती है । व कई जगह खिचड़ी बनाकर प्रसाद के रूप में वितरण भी किया जाता हाई ।

लोहड़ी के रूप में

हरियाणा और पंजाब में इसे लोहड़ी के रूप में एक दिन पहले 13 जनवरी को मनाया जाता है। आग जलाकर  तिल, गुड़, आदि जिसे तिलचौली कहते है से पूजा करते हैं। मूंगफली, तिल की बनी हुई गजक और रेवड़ियाँ बाँटकर खुशियाँ मनाते हैं।

पोंगल के रूप में

तमिलनाडु में इस त्योहार को पोंगल के रूप में मनाते हैं। पोंगल मनाने के लिये स्नान करके खुले आँगन में मिट्टी के बर्तन में खीर बनायी जाती है जिसे पोंगल कहते हैं। इसके बाद सूर्य देव को प्रसाद चढ़ाया जाता है। उसके बाद खीर का प्रसाद वितरण होता हैं

उत्तरायण के नाम से

मकर संक्रांति को उत्तरायण के नाम से भी जाना जाता है, इस दिन सूर्य उत्तरी गोलार्ध की और आने शुरू हो जाता है। संक्रांति पर काले तिल की बहुत मान्यता है बताया जाता है कि जब सूर्य देव शनि देव से मिलने गए थे तब उनके पास केवल काले तिल ही बचे थे । सूर्य देव ने काले तिल ही उन्हें अर्पण किये थे।

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