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बिधान चन्द्र राय चिकित्सक मुख्यमंत्री

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बिधान चन्द्र राय

बिधान चन्द्र राय देश के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ-साथ एक चिकित्सक भी थे। आज़ादी के बाद उन्होंने अपना सारा जीवन लोगों के लिए चिकित्सा सेवा को समर्पित कर दिया।

डॉ राय ने बिहार में जन्म लेकर २० वर्ष की आयु तक वहीं शिक्षा पाई, फिर अधिकतर बंगाल में रहते हुए और काम करते हुए वे समयसमय पर असम भी गए। इस तरह डॉ राय खुद को तीनों प्रांतों का मानते थे।

डॉ बिधान चंद्र रॉय बहुत सम्मानित चिकित्सक और एक प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी थे तथा 1948 से 1962 तक 14 साल तक वे पश्चिम बंगाल के दूसरे मुख्यमंत्री रहे।

उनके पिता प्रकाशचंद्र राय डिप्टी मजिस्ट्रेट थे, पर अपनी दानशीलता एवं धार्मिक वृत्ति के कारण कभी अर्थसंचय न कर सके। अत: विधानचंद्र राय का प्रारंभिक जीवन अभावों के मध्य ही बीता। कलकत्ता से उन्होंने एम. डी. की परीक्षा उत्तीर्ण की।  उच्च अध्ययन के इंग्लैंड गए।

विश्व के डाक्टरों में डाक्टर राय का प्रमुख स्थान था। डा. राय ने सन् 1923 में ‘यादवपुर राजयक्ष्मा अस्पताल’ की स्थापना की तथा ‘चित्तरंजन सेवासदन’ की स्थापना में भी उनका प्रमुख हाथ था। कारमाइकेल मेडिकल कालेज को वर्तमान विकसित स्वरूप प्रदान करने का श्रेय डा. राय को ही है।

वे इस कालेज के अध्यक्ष एवं जीवन पर्यंत ‘प्रोफेसर ऑव मेडिसिन’ रहे। कलकत्ता एवं इलाहबाद विश्वविद्यालयों ने डा. राय को डी. एस-सी. की सम्मानित उपाधि प्रदान की थी।

चिकित्सक के रूप में उन्होंने पर्याप्त यश एवं धन अर्जित किया और लोकहित के कार्यों में उदारतापूर्वक मुक्तहस्त दान दिया। बंगाल के अकाल के समय आपके द्वारा की गई जनता की सेवाएँ अविस्मरणीय हैं।

उनके जन्म दिवस 1 जुलाई को चिकित्सक दिवस के रूप में मनाया जाता है 

डाक्टर विधानचंद्र राय वर्षों तक कलकत्ता कारपोरेशन के सदस्य रहे तथा अपनी कार्यकुशलता के कारण दो बार मेयर चुने गए। उन्होंने कांग्रेस वकिंग कमेटी के सदस्य के रूप में सविनय अवज्ञा आंदोलन में जेल भी गए थे। सन्‌ 1923 में बंगाल विधानसभा के लिए चुनाव ल़डा। सन्‌ 1942 में वे राष्ट्रीय शैक्षिक परिषद के अध्यक्ष बने। सन्‌ 1944 में उनको डॉक्टर ऑफ साइंस की उपाधि दी गई। जनवरी 1947 में उन्हें भारतीय विज्ञान कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया।

पश्चिम बंगाल में अपने मुख्यमंत्री काल के दौरान उन्होंने कई अहम विकास कार्य किए। अपने अथक प्रयासों और समाज कल्याण के कार्यों के लिए उन्हें 1961 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से भी सम्मानित किया गया था।

1 जुलाई, 1962 को उनका निधन हुआ।

वह कलकत्ता विश्वविद्यालय के मेडिकल कॉलेज के छात्र थे। केंद्र सरकार ने उनकी स्मृति में डॉ बीसी रॉय राष्ट्रीय पुरस्कार की स्थापना की है। उन्होने 1928 में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) के गठन और भारत की मेडिकल काउंसिल (MCI) की स्थापना में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । संघर्षमय जीवन को उनकी राजनीति और चिकित्सा के क्षेत्र में महान् उपलब्धियों एवं देश को प्रदत्त महती सेवाओं के लिए उन्हें सन् 1961 में राष्ट्र के सर्वोत्तम अलंकरण ‘भारतरत्न’ से विभूषित किया गया।