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लॉकडाउन के दौरान हमारे खट्टे मीठे अनुभव

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“लॉकडाउन के दौरान हमारे खट्टे मीठे अनुभव”

 चीन के बुहान में पशु बाजार से फैला कोरोना वायरस देखते ही देखते कई देशों में फ़ैल गया और लोगों की जिन्दगी से खेलना शुरू कर दिया । इसने धीरे से अपने कदम मेरे देश भारत में भी रख दिए ।

शुरुआत में कोरोना वायरस के संक्रमण की बात को मैं बहुत ही हल्के में ले रहा था । परंतु धीरे धीरे माहौल बदल गया और एक दिन वो आया जब प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी स्वयं दूरदर्शन पर आए और 22 मार्च 2020 को जनता कर्फ्यू की घोषणा कर दी ।

कर्फ्यू तो सुना था पर जनता कर्फ्यू पहली बार सुना था, प्रधानमंत्री की एक एक बात का अक्षरशः पालन किया और पूरे दिन घर के अंदर रहे , हालाँकि छत पर से बाहर की सुनसान गलियों और सड़कों को निहारा भी । शाम 5 बजे 5 मिनट के लिए अपने घर से कोरोना वारियर्स के लिए ताली, थाली बजाने बालकनी में सपरिवार एकत्रित रहे ।

लेकिन ये क्या अचानक से एक और घोषणा हुई वो थी भारत में 21 दिन लॉकडाउन रहेगा । ये शब्द भारत में तो पहली बार सुना था । अब समाचार पर विशेष ध्यान दिया तब पता चला कि सब कुछ बंद होने जा रहा है न कोई दुकान खुलेगी , न ऑफिस और न फेक्ट्री , और तो और सभी प्रकार के परिवहन बन्द हो जाएंगे । जो जहाँ है वहीं रहे ऐसा बोला गया ।

देश में कोरोना बीमारी को लेकर लॉकडाउन को अति आवश्यक मानते हुए इसका पालन सख्ती से करने पर जोर देते हुए विभिन्न घोषणाएं की गईं । उन घोषणाओं में से एक ऐसी थी जो मुझसे जुड़ी हुई थी और वो थी आवश्यक सेवाएँ जारी रहेंगीं। जी हाँ राशन की दुकानों के साथ पुलिस, स्वास्थ्य, सफाई और बैंक सेवाओं को जारी रखने का निर्णय लिया गया था।

यहीं से शुरुआत हुई लॉक डाउन के दौरान होने वाले खट्टे मीठे अनुभवों की । यहाँ शुरुआत करना चाहूंगा घोषणा के कुछ ही मिनट बाद से ही —

राशन की दुकानों पर लम्बी कतार:

हुआ कुछ यूँ कि जैसे ही घोषणा हुई कि कुछ दिन तक कुछ भी नहीं खुलेगा, कोई बाहर नहीं निकलेगा। तो तुरंत ही घर की जरूरी वस्तुओं और खाने पीने की व्यवस्था की ओर ध्यान गया।

मैं तुरंत ही एक लिस्ट बनाकर सामान लेने के लिए घर से निकल पड़ा , लेकिन ये क्या कोई भी राशन की दुकान ऐसी नहीं दिखी जिस पर भीड़ न हो , सामान लेना है तो आपको कम से कम एक से दो घंटे इंतजार करना होगा । अब तक मैंने राशन की दुकानों पर इतनी भीड़ जमा नहीं देखी थी।

क्योंकि कभी लाइन में लगकर इतनी भीड़भाड़ में राशन नहीं खरीदा था तो मैं वापस घर आ गया सोचा राशन दुकानों को तो खोलने की छूट है एक दो दिन में ले लेंगे। लेकिन कई दुकानों को प्रशाशन द्वारा खुलने ही नहीं दिया गया।

 सुनसान हुए बाजार, सूनी हुई सड़कें:

सुबह तैयार होकर बैंक की तरफ प्रस्थान किया रास्ते के सारे बाजार बंद थे , सड़क पर कोई ट्रैफिक न था दो चार वाहन ही निकल रहे थे ।  हर चौराहे का नजारा बदला हुआ था हर जगह पुलिस थी जो लोगों को रोक रही थी । गले में लटके पहचान पत्र लॉकडाउन पास का कार्य कर रहे थे। रास्तों के नज़ारे दिन प्रतिदिन बदलते गए, कहीं वन वे बन गया तो कहीं रास्ता रोक दिया गया।

जो भी लोग बिना कार्य के बाहर निकले थे उनका स्वागत विभिन्न जगह दिन प्रतिदिन विभिन्न प्रकार से पुलिसकर्मी कर रहे थे कहीं लाठी भांजी गईं तो कहीं तिलक लगाकर आरती उतारकर बेइज्जत किया गया l बीच सडक मुर्गा बनाना, परेड करवाना इत्यादि सजा भी दी गईं।

लॉकडाउन में बैंक के हालात:

कोरोना बीमारी का इलाज है एक दूसरे से दूरी। मगर बैंकों के साथ उल्टा हुआ। सरकार की तरफ से जनधन खातों में रकम जमा की घोषणा ने हालत बिगाड़ दी। अन्य दफ्तरों की तरह बंद होने के बजाय बैंक की छुट्टी रद्द कर दी गईं।

मुहँ पर मास्क और हाथों में दस्ताने लगाकर पूरे दिन काम कर पाना बहुत दिक्कत भरा रहा। ग्राहकों को संभालना उनको सेनेटाइजर से हाथ साफ़ करवाना बहुत कुछ ऐसा था जिसे शाखा में ही महसूस कर सकते हैं प्रशासनिक कार्यालय नहीं समझ सकता।

दुःख तब होता था जब लोग बिना जरुरत के बैंक सिर्फ ये पूछने आते थे कि उसके खाते में मोदी वाले पांच सौ आए कि नहीं। उससे भी ज्यादा दुखद ये था कि यदि किसी अमीर का जनधन खाता है तो उसके खाते में सरकारी पैसा आया, पर यदि गरीब का सामान्य खाता है तो उसे सरकारी लाभ नहीं मिल सका। सरकार को अपनी प्रक्रिया पर पुनः विचार की आवश्यकता है क्योंकि अमीरों के भी जनधन खाते हैं और गरीबों के भी सामान्य खाते हैं।

स्वास्थ्य और रोटी ही महत्वपूर्ण:

सुबह आंख खुलते ही देखते हैं मेरा गला, नाक सब ठीक है ना, मेरा परिवार स्वस्थ है ना ? कहीं घर में या दफ्तर में किसी को खाँसी, जुकाम, बुखार तो नहीं।  नौकरी, व्यापार, पैसा, गाड़ी कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं अगर घर या दफ्तर में एक छींक भी सुनाई दे तो दिल दहल जाता है।

आज घर में आटा, दाल, सब्जी उपलब्ध हैं कि नहीं। हैं तो कितनी हैं, उसमें परिवार के कितने दिन निकल जाएंगे सिर्फ यही सोच है। रेस्टोरेंट, होटल, गर्मी की छुट्टियों में घूमने जाने का कोई जिक्र नहीं।

आज का समय इन्सान को समझाने के लिए काफी है कि हमारी मूलभूत जरूरत रोटी. कपड़ा और मकान ही है। दरअसल हमारी मूलभूत जरूरतें तो बहुत कम में पूरी हो सकती हैं लेकिन शायद हम दिखावे और ऐशोआराम की दुनियाँ में ये सब भूल गए थे।

 एक तरफ पकवान प्रतियोगिता दूसरी ओर खाने की तलाश:

समृद्ध परिवारों के लोग लॉकडाउन में यू ट्यूब से रेसिपी देखकर विभिन्न पकवान बनाते और अपने शोशल मीडिया पर शेयर करते दिखे। अपने रिश्तेदारों के रोजाना के स्टेटस और घर में बनते पकवानों को देख ऐसा लगा जैसे कोई पकवान प्रतियोगिता चल रही हो।

दूसरी तरफ कुछ गरीब लोग खाने को मोहताज दिखे जिनके लिए हमारी संस्थाएं पैसा एकत्रित कर राशन पहुँचा रही थी साथ ही लगातार पूरी सब्जी का वितरण भी जारी था l नैरोबी की एक खबर ने दिल दहला दिया जिसमें एक माँ ने चूल्हे पर पत्थर उबालने इसलिए रखे ताकि बच्चे खाने के इंतजार करते करते सो जाएँ।

ऑनलाइन कक्षाएं :

लॉकडाउन के चलते स्कूल और प्रशिक्षण केंद्र भी बंद हैं। बड़ी हंसी आती है बताते हुए कि जिन बच्चों को हम अधिक देर कंप्यूटर पर बैठने या मोबाइल चलाने पर डांट देते थे आज उनकी कक्षाएं ऑनलाइन चलने लगीं। पता नहीं इसे क्या कहा जाए जब कक्षा एक के बच्चे को ऑनलाइन पढाई कराई जाए, ये बच्चे की पढाई से अधिक माता पिता की पढाई है।

सबसे महत्वपूर्ण है गृहणी:

लॉकडाउन के दौरान लोग घरों में कैद हैं, काम पर नहीं जा रहे, ऐसे में परिवार का एक सदस्य ऐसा भी है जिसका कार्य पहले से अधिक बढ़ गया है और वो सदस्य है गृहणी।

पहले सुबह का नाश्ता खिलाकर और दोपहर के लिए टिफिन दे पति को काम पर और बच्चों को स्कूल भेजकर थोडा आराम कर लेने वाली गृहणी के आराम का ये समय भी जैसे छिन गया है।

सभी के घर में ही रहने से गृहणी पर काम का बोझ बढ़ा है अब कोई भी किसी भी समय कुछ न कुछ फरमाइश कर देता है जिसे वो मुस्कुराकर अब भी पूरा कर रही है।

देश के साथ साथ आम आदमी की अर्थव्यवस्था भी खराब:

जब देश की फैक्ट्री बंद हो जायें, लोग घर पर बैठ जायें तो देश का विकास भी रुक जाता है और इससे अर्थव्यवस्था को भारी क्षति पहुँचती है।

सिर्फ कहने को कोई लॉक डाउन में रोड पर नहीं आया, पर हकीकत में घर बैठे ही कई लोग रोड़ पर आ गए । सबके व्यापार ठप पड़े हैं, नए शुरू किए व्यापार अभी ठीक से चले भी न थे कि अचानक ये ब्रेक लग गया। छोटे मजदूर, महिलाएं, दिहाड़ी पर काम करने वाले लोग, इस लॉकडाउन से सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं। नौकरीपेशा लोगों के सामने नौकरी जाने का खतरा मडराने लगा है।

 बच्चे और बुजुर्ग की बिना इलाज मौत:

सबसे अधिक खट्टा अनुभव था जब खबर फैली हुई थी कि एक बुजुर्ग जिनको कि सांस की बीमारी थी उन्हें किसी भी निजी अस्पताल में इलाज न मिला। सरकारी अस्पताल में भी समय से न देखे जाने के कारण उनके प्राण पखेरू उड़ गए।

उससे भी अधिक दुःख तब हुआ जब एक बच्चे ने इलाज के अभाव में माँ की गोद में दम तोड़ दिया जबकि पिता इलाज को पर्चा बनवाने की कतार में था ।

पहले परिवार संग मौज मस्ती फिर छुट्टी और आराम से परेशान:

लोगों के शुरुआत के कुछ दिन बहुत ही रोचक रहे जैसे बिन मांगे मुराद मिली है छुट्टी की । परिवार के साथ बहुत ही उम्दा समय मिला है। घर में रहने से परिवार जन बहुत ही खुश हैं। तरह तरह के खेल,अन्ताक्षरी इत्यादि से बच्चे से बुजुर्ग तक सभी खुश दिखे।

लेकिन घर की चारदीवारी में मन आखिर ऊबने लगता है न किसी का आना न किसी के घर जाना। वो कहते हैं न “अजब कर दिए रिश्ते इन हालातों ने, फुरसत सबको है पर मुलाकात किसी से नहीं ” ।

मोदी जी कोई तो नया काम दो :

प्रधानमंत्री मोदी जी के कहने पर पहले जनता कर्फ्यू में ताली और थाली बजाना और फिर लॉकडाउन के दौरान रात को दिए जलवा कर दिवाली जैसा माहौल बन जाना लोगों में हर्ष की एक लहर पैदा कर गया । मजाक के लहजे में ही सही मगर लोगों ने कहना शुरू कर दिया कि मोदी जी कोई नया तरीका बताओ जश्न मनाने को। कोई नया काम दो।

कहीं फूल बरसाए तो कहीं पत्थर चले:

देश भर में कोरोना वारियर्स (डॉक्टर, पुलिस, सफाई कर्मी, बैंकर्स आदि) मदद में जुटे हुए हैं। उनके कार्य की सराहना को जगह जगह समझदार लोगों ने फूल बरसाकर स्वागत किया ताली बजाकर उनकी हौसला अफजाई की गई । सेना के द्वारा विशेष अभियान में हवाई जहाज और हेलीकॉप्टरों द्वारा अस्पतालों के ऊपर पुष्प वर्षा की गई।

वहीँ दूसरी ओर कुछ लोगों का काला चेहरा बेनकाब हुआ, पुलिस और डॉक्टर जब संक्रमित लोगों को इलाज के लिए लेने गए तो कुछ लोग रक्षकों के भक्षक बनकर सामने आए और उनके ऊपर हमले किए पत्थर फेंके गए।

प्रदूषण हुआ कम प्रकृति मुस्कुराई :

लॉकडाउन के दौरान सिर्फ आवश्यक सेवाएँ छोड़कर सबकुछ बंद है, न कोई फेक्ट्री चल रही और न ही सड़कों पर वाहनों की कतारें हैं। इन सब चीजों पर अंकुश लगने से प्रदूषण का स्तर भी न्यूनतम पहुंच गया है। वातावरण साफ़ हो गया है, प्रदूषण का धुंध अब पूरी तरह से साफ हो चुका है। आप ऊँची जगह या छत से बहुत दूर तक की किसी भी चीज को साफ साफ देख सकते हैं , साँस लेने में कोई जलन महसूस नहीं होती।

शायद लॉकडाउन न होता तो हम अपने देश में इतनी साफ़ आवोहवा नहीं देख पाते। आज कई स्थानों पर नदियों का जल पीने योग्य तक साफ़ हुआ है। शायद परिस्थितियों ने आँखें खोल दी हैं कि मानव विकास के नाम पर जो कर रहा है वो कतई उचित नहीं है। वायु, ध्वनि और जल -प्रदूषण में गिरावट आयी है जो प्रकृति की दृष्टि से लाभदायक है। आज हमारी प्रकृति को जैसे नया जीवन मिल गया है।

शोशल मीडिया और मीडिया ने बहलाया दिल:

लॉकडाउन में घर पर लोगों का सहारा बना टेलीवीजन, दूरदर्शन द्वारा पुराने धारावाहिकों की झड़ी लगा दी गई है। सबसे अच्छी बात है कि रामायण, महाभारत,शक्तिमान,चाणक्य आदि ऐसे धारावाहिक शुरू किए गए जो बुजुर्गों से बच्चों तक सबके प्रिय हो गए। दूसरी ओर मोबाइल पर फेसबुक और व्हाट्सएप ने पूरा साथ दिया।

मदद को आगे बढ़ते हाथ:

कोरोना आपातकाल स्थिति से निपटने के लिए सरकार ने PMCARES नाम से फण्ड बनाया है जिसमें लोगों ने दान किया। लेकिन कोरोना से उत्पन्न हालात के लिए लोगों ने सीधा खाना और राशन देना शुरू कर दिया जो एक अच्छा कदम है। विभिन्न संस्थाओ द्वारा लोगों ने खाना वितरण में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया।

एक के बाद एक लगातार लॉकडाउन:

न कोरोना बीमारी ख़त्म हो रही न लॉकडाउन, इसे लगातार बढ़ाना पड रहा है।

लॉकडाउन 3.0 में सबसे बड़ी हास्यास्पद बात हुई शराब की दुकानों का खोला जाना। शोशल डिस्टेन्सिंग की धज्जियाँ उड़ गईं। लोग कहने लगे जहाँ जरुरी दुकान भी बन्द हैं वहां ऐसा निर्णय काफी गलत है ।

चलते चलते सिर्फ इतना ही कहना है :

मुश्किल समय लोगों को काफी कुछ सिखा जाता है। विकट परिस्थिति से बाहर निकलना ही काबिलियत होती है। धीरज रखिए समय सब बदल देता है, इस समय जरूरत सिर्फ सब्र की है।

 

सुधीर कुमार शर्मा

 

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