शेर अकेले चलता है यह बात राजनीति में लागू नहीं होती । बँटते वोट को एकसाथ लाने के लिए राजनीतिक दल मिलकर गठबंधन बनाते हैं ।
काँग्रेस के यूपीए को महा गठबंधन का नाम भले ही दिया जाए लेकिन इस मामले में भाजपा का एनडीए भी कम नहीं ।
दरअसल पार्टियों के एक साथ आने से ऐसा मानते हैं कि अपने वोट के साथ दूसरी पार्टी का वोट जुड़ने से जीत आसानी से मिल जाएगी ।
साल 2014 में भाजपा ने 16 सहयोगी दलों के साथ मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ा था, वहीं इस बार यह आंकड़ा 29 हो गया है ।
भाजपा जहां ज्यादा से ज्यादा दलों के साथ हाथ मिला रही है, वहीं उनके प्रति नरम रुख भी अपना रही है ।
झारखंड में भाजपा ने गिरिडीह सीट जहां से भाजपा पिछले पांच बार से जीतती रही है उसे सहयोगी दल एजेएसयू के लिए छोड़ कर बताया है कि गठबंधन जरूरी है ।
महाराष्ट्र में शिवसेना के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर लगातार निशाना साधने के बाबजूद भाजपा ने शिवसेना के साथ गठबंधन किया है ।
शिवसेना नोटबंदी, अर्थव्यवस्था और सर्जिकल स्ट्राइक सहित कई मुद्दों पर पीएम मोदी पर निशाना साधती रही है ।
बिहार में 40 सीटों में से 22 पर जीत दर्ज करने के बाद भी इस बार भाजपा केवल 17 सीटों पर चुनाव लड़ रही है ।
बिहार में भी भाजपा अपने सहयोगियों के लिए जीती हुई सीटें छोड़ सकती है। बिहार की नवादा सीट एलजेपी ले सकती है यो जदयू ने भी भाजपा की कई जीती हुई सीटों की माँग की है ।
उत्तर प्रदेश में भाजपा अपने सहयोगी दलों सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी और अपना दल के साथ सांठ गाँठ बिठाने में लगा हुआ है ।