Skip to content
Home बैंकों के निजीकरण की खबर कर्मचारी परेशान

बैंकों के निजीकरण की खबर कर्मचारी परेशान

  • by

“टॉप मैसनेजमेंट और यूनियन मर्जर के लिए मनाएं सरकार को “

यूनियन और टॉप मैनेजमेंट की सोच थी बैंक मर्ज होगी तो जिसमें मर्ज होगी उसमें परेशानी आएगी । इसलिए मर्जर बेकार है नहीं होना चाहिए ।

परेशानी किसको आती टॉप मैनेजमेंट को जिनको थोड़ा अधिक काम करना पड़ता और रॉब थोड़ा कम हो जाता । या फिर यूनियन के नेताओं को जो दूसरे बैंक में मर्ज होने से यूनियन नेता नहीं रह जाते क्योंकि जिसमे मर्ज हो रहे हैं उसमें पहले से यूनियन नेता मौजूद थे ।

बैंक मर्ज हो रही थीं । कर्मचारी यूनियन विरोध कर रहे थे । कर्मचारियों ने विरोध में हड़तालें कीं जिससे उनका ही वेतन कटा। फिर भी कई बैंक मर्ज हो गईं।

कुछ बड़ी बड़ी बैंक मर्ज हुईं जो बचे खुशी मना रहे थे कि हम बच गए । पर सरकार ने प्लान के तहत बड़े बड़ों को सिर्फ खदेड़ा और छोटों को चक्रव्यूह में घेरा ।

जो समझदार थे उस समय भी बोल रहे थे कि छोटी बैंक अकेले रह गईं तो उनकी बोली आसानी से लग सकती है । बड़ी बैंकों को खरीदना इतना आसान न होगा ।

बैंक निजीकरण की खबर से परेशान हैं कर्मचारी

अब जबकि कुछ बैंकों के निजीकरण की खबर आ रही है तो उन बैंकों के कर्मचारियों के चेहरे उदास हैं परेशान हैं । वे जमकर उस यूनियन को कोस रहे हैं जो मर्जर के विरोध में हड़ताल करके सेलरी कटवाती आई हैं । जिसका कोई नतीजा नहीं बैंक लगातार मर्ज हुईं और अब निजीकरण की तरफ जा रही हैं

अब जबकि सरकार ने फिर से  ऐसी बात रखी है तब हर कर्मचारी के अंदर से आवाज आ रही है कि काश कोई बड़ी बैंक हमारी बैंक को भी अपने साथ ले ले ।

वक्त अभी भी है टॉप मैनेजमेंट और यूनियन सरकार से जाकर बात करें कि हम मर्जर को तैयार हैं किसी भी सार्वजनिक क्षेत्र की बैंक में मर्ज कर दीजिए । अन्यथा एक बार निजीकरण की फ़ाइल आगे बढ़ गई तो बैंक कर्मियों को मर्जर के विरोध की सजा जिंदगी भर झेलनी होगी । जबकि मर्जर से दो चार साल ही परेशानी होगी ।

Leave a Reply

Your email address will not be published.