किन बैंकों का होगा निजीकरण
Bank Nijikaran (Bank Privatisation)
जिन बैंकों का विलय नहीं हुआ हैं, सरकार उन बैंकों का निजीकरण करने जा रही है। पहले चरण में बैंक ऑफ इंडिया, इंडियन ओवरसीज बैंक, सेंट्रल बैंक ऑफ़ इंडिया, यूको बैंक, बैंक ऑफ महाराष्ट्र, पंजाब एंड सिंध बैक में से किन्ही दो का निजीकरण किया जाएगा जैसा कि बजट में घोषणा की गई है ।
अभी इस वर्ष में दो बैंकों के निजीकरण की ही बात कही गई है लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं कि पहली दो बैंकों के निजीकरण के बाद अन्य बैंक बच जाएँगे , सरकार पहले ही साफ़ कर चुकी है कि अधिकतम चार बड़े बैंक ही सार्वजनिक क्षेत्र में छोड़े जाएँगे बाकी का या तो विलय होगा या निजीकरण ।
पिछले बैंक विलय के बाद हाल फिलहाल अन्य किसी बैंक के विलय की घोषणा नहीं की गई है, यदि बजट में घोषित दो बैंकों का निजीकरण सफल रहा तो प्रतीत होता है कि सरकार अन्य बैंकों का भी निजीकरण धीरे धीरे आगामी वर्षो में कर देगी ।
किन दो बैंकों पर गिरेगी गाज ?
बजट में यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि वे कौन से दो बैंक होंगे जिनका निजीकरण किया जाएगा । मुद्दे को एक तरह से टॉप सीक्रेट बनाकर रखा गया है । हालाँकि यह बताया गया है कि नीति आयोग तय शुदा नाम वित्त मंत्रालय को भेज चुका है ।
हर विशेषज्ञ द्वारा अलग अलग कयास लगाए जा रहे हैं इनमे हर विशेषज्ञ के लिए पंजाब एंड सिंध बैक पहली पसंद के तौर पर सामने आ रही है जबकि दूसरे बैंक के लिए अलग अलग राय हैं जिनमे क्रमशः इंडियन ओवरसीज बैंक, यूको बैंक, बैंक ऑफ महाराष्ट्र में से कोई एक विकल्प माना जा रहा है ।
एक विशेषज्ञ के अनुसार बैंक ऑफ़ इंडिया और सेन्ट्रल बैंक ऑफ़ इंडिया का आकार अधिक बड़ा होने के कारण ये दोनों ही लिस्ट से बाहर हो जाते हैं । बचे बैंकों में से ही दो का चयन होगा ।
जबकि अन्य विशेषज्ञ के अनुसार सरकार जो बैंक नुकसान में होंगे और जिनका मेनेजमेंट सरकार की द्रष्टि में सही नहीं सरकार उन्हें हटाने का प्रयास करेगी । यदि इसे देखा जाता है तो बैंक ऑफ़ महाराष्ट्र भी फ़िलहाल के हालातों में लिस्ट से बाहर हो जाएगी ।
लेकिन इसके एकदम उलट तीसरे विशेषज्ञ का मानना है कि किसी भी नुकसान वाली या बिना विशेषता वाली बैंक में भला कोई भी निजी कम्पनी क्यों निवेश करेगी अतः सरकार पैसा प्राप्त करने के लिए प्रॉफिट वाली बैंकों पर ही दाव लगाएगी । लेकिन यह कदम सरकार की छवि को ख़राब करेगा कि प्रॉफिट वाले विभाग को बेच दिया ।
अब वक्त ही बताएगा कि कौन सी दो बैंकों के कर्मचारी बदकिस्मत होंगे जो प्रतियोगी परीक्षा और साक्षात्कार के बाद सरकारी बैंक में चयनित होकर भी निजी बैंक के कर्मचारी बना दिए जाएँगे ।
क्या सार्वजनिक बैंकों का निजीकरण ही इलाज है?
सार्वजनिक बैंकों का निजीकरण करना समस्या का समाधान नहीं है, निजीकरण से वास्तविक समस्या छिप जायेगी। बैंकों के राष्ट्रीयकरण के बाद भी निजी क्षेत्र के बैंक दिवालिया हुए थे और उनका सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में विलय किया गया था। सरकारी बैंकों के निजीकरण की बजाए ढांचागत सुधार किये जाने की जरूरत है। बैंक निजीकरण की नहीं बल्कि सार्वजनिक बैंकों के कामकाज की पारदर्शिता और सुपरविजन की ज़रूरत है जिससे बैंकों के बढ़ते एनपीए पर नियंत्रण हो सकें और उनकी वसूली हो सकें।
Bank DA from February 2021 to April 2021
कैसे होगा निजीकरण :
यदि सार्वजनिक बैंकों में यदि सरकार को अपनी हिस्सेदारी कम करनी हो या निजीकरण करना हो तो सरकार को पहले बैंक राष्ट्रीयकरण अधिनियम में संशोधन करना होगा।
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